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Sunday 26 September 2021

प्रोटीनः रक्षा कवच भी एवं वायरस जनित रोगों का द्वारपाल भी

 

प्रोटीन हमारे शरीर के लिए बहुत ही महत्चपूर्ण अवयव है। इसकी कमी,अत्यधिक मात्रा एवं प्रोटीन की संरचना में गड़बड़ी होने पर हमारे शरीर में इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। प्रोटीन जहां हमारे शरीर को स्वस्थ एवं मजबूत बनाने में मदद करता है वहीं इसके अधिक मात्रा का सेवन भी  हमारे शरीर पर बुरा प्रभाव डालता है। प्रोटीन की संरचना में गड़बड़ी आने पर हमारा जीनोम प्रभावित तो होता ही है साथ ही इससे कई प्रकार की बीमारियां भी होती है,जैसे कैंसर,डिसमेंिया इत्यादि।

          प्रोटीन जहां एंटीजेन के रूप में हमारा प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर हमें अनेक बिमारियों से बचाता है वहीं यह रिसेप्टर के रूप में वायरस को हमारे शरीर में प्रवे भी कराता है। वैक्सीन के निर्माण में भी प्रोटीन का इस्तेमाल किया जाता है।

                    देश के 16 शहरों में हुए एक सर्वे के मुताबिक 73% भारतीयों में प्रोटीन की कमी है और 93% लोगों को इसकी जानकारी भी नहीं है। जबकि कोरोना काल में प्रोटीन की ज्यादा जरूरत है। संक्रमण के बाद कमजोर हो चुकी मांसपेशियों और रोगों से लड़ने वाले इम्यून सिस्टम के लिए एक्सपर्ट प्रोटीन लेने की सलाह दे रहे हैं। प्रोटीन की कमी होने पर मरीज थकान, कमजोरी, चलने-फिरने में दिक्कत और अनिद्रा से जूझ रहे हैं।

एक्सपर्ट का कहना है शरीर में हुए डैमेज को रिपेयर करने का काम प्रोटीन ही करता है लेकिन 90% लोग यही नहीं जानते कि रोजाना कितना प्रोटीन लेना चाहिए। इसमें सबसे ज्यादा 95% से अधिक महिलाएं शामिल हैं। नतीजा 71% भारतीयों की मांसपेशियां कमजोर हैं।

प्रोटीन कैसे काम करता है, रोजाना कितना प्रोटीन लेना चाहिए और डाइट में इसकी मात्रा अधिक या कम होने पर क्या फायदे-नुकसान हो सकते हैं।

 

प्रोटीन क्या है और कितना लें


जिस तरह एक बिल्डिंग को तैयार करने के लिए ईंटों का होना जरूरी है, उसी तरह शरीर के लिए प्रोटीन अहम है। इसीलिए इसे बिल्डिंग ब्लॉक्स ऑफ लाइफ भी कहा जाता है। शरीर के विकास के लिए प्रोटीन का होना जरूरी है। ICMR (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) का कहना है कि रोजाना कम से कम 48 ग्राम प्रोटीन लेना जरूरी है, लेकिन भारतीयों के खानपान में प्रोटीन की मात्रा इससे काफी कम है।

औसतन, एक इंसान का जितना वजन होता है, उसे उतने ग्राम प्रोटीन लेना चाहिए। जैसे- आपका वजन 60 किलो है तो रोजाना डाइट में 60 ग्राम प्रोटीन लेना चाहिए।

प्रोटीन कैसे काम करता है, अब इसे समझें


प्रोटीन एक ग्रीक शब्द प्रोटीयोज से मिलकर बना है, जिसका मतलब है प्राइमरी यानी सबसे जरूरी।


 प्रोटीन अमीनो एसिड की छोटी-छोटी चेन से मिलकर बना


 होता है। आसान भाषा में समझें तो यह स्किन और मांसपेशियों में होने वाली टूट-फूट को रिपेयर करता


 है। इंसान के शरीर में एक लाख तरह के प्रोटीन होते


 हैं। इनमें हीमोग्लोबिन, किरेटिन और कोलेजन जैसे प्रोटीन शामिल हैं। जिनका शरीर के अलग-अलग


 हिस्सों से कनेक्शन है।


भारतीयों में प्रोटीन की कमी के 4 बड़े कारण

·       

       भारतीयों की थाली में फैट-स्टार्च अधिक: बीएमजे जर्नल में पब्लिश रिसर्च रिपोर्ट कहती है, भारतीयों की थाली में स्टार्च और फैट अधिक व प्रोटीन     कम होता है। 91% शाकाहारियों में प्रोटीन की कमी देखी गई है।

·         जागरूकता की कमी: ज्यादातर भारतीयों को इसकी जानकारी नहीं रहती कि रोजाना डाइट में कितना प्रोटीन लें। वर्किंग वुमन और हाउसवाइव्स में 70-80% तक प्रोटीन की कमी रहती है।

·         थाली में चावल और गेहूं अधिक: भारतीयों की थाली में चावल और गेहूं अधिक होता है जबकि दालों का प्रयोग कम किया जाता है। एक शाकाहारी इंसान की डाइट में दालों का होना जरूरी है। 2016 में दालों को सुपरफूड घोषित किया गया था।

·         प्रोटीन को लेकर भ्रम: 70% महिलाएं मानती हैं फल और सब्जियों में प्रोटीन होता है। वहीं, 73% शहरी आबादी के मुताबिक  पत्तेदार सब्जियों में प्रोटीन अधिक होता है। ऐसे भ्रम भी प्रोटीन की कमी का कारण बनते हैं।

अब प्रोटीन के फायदे और नुकसान भी जान लीजिए

·         प्रोटीन लेना जरूरी है, क्योंकि यह रोगों से लड़ने वाले इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है। हड्डियों और मांसपेशियों को स्ट्रॉन्ग बनाने का काम भी यही प्रोटीन करता है। यह हार्मोन का लेवल नहीं बिगड़ने देता। इसके साथ बाल, नाखून और स्किन को सेहतमंद रखता है। गर्भवती और बच्चे को दूध पिलाने वाली महिलाओं के लिए यह बेहद जरूरी है ताकि बच्चे का विकास बेहतर हो सके।

·         एक रिसर्च में साबित भी हुआ है कि यह मेटाबॉलिज्म सुधारकर मोटापा कंट्रोल करता है। साथ ही थकावट दूर करने का भी काम करता है।

·         प्रोटीन की मात्रा जरूरत से ज्यादा लेते हैं, तो कई तरह का खतरा भी बढ़ता है। इसकी अधिक मात्रा बढ़ने लेने पर शरीर इसे बाहर नहीं निकाल पाता इसका सीधा असर किडनी पर पड़ता है। प्रोटीन अधिक लेने पर किडनी फेल और स्टोन होने का खतरा अधिक रहता है। इसके अलावा वजन बढ़ना, सांसों में बदबू आना, कब्ज होने के साथ कैंसर और हृदय रोगों की आशंका भी रहती है।

प्रोटीन के प्रकार

एम प्रोटीन (membrane protein)- एक वायरस के चारों ओर का प्रोटीन होता है जिसको एम प्रोटीन (membrane protein) कहा जाता है। 

 

ई प्रोटीन (Envelope protein)- जेनेटिक मटेरियल के चारों तरफ दो घेरे होते हैं। इनर लेयर को इनवलेप प्रोटीन कहते हैं। आउटर लेयर को एम प्रोटीन  कहते हैं।





स्पाइक प्रोटीन - स्पाइक प्रोटीन कोरोना वायरस का प्रोटीन है जो इंसानी शरीर के एसीई2 रिसेप्टर से जुड़ता है। इस तरह वायरस शरीर में तेजी से फैलता है।

           कोरोना ग्रीक शब्द है जिसका अर्थ है क्राउन। क्राउन के चारों तरफ सूरज की रोशनी की तरह

 किरणें निकली होती हैं। ऐसी ही संरचना कोरोना वायरस की है। कोरोना वायरस की जो ये लाइन बाहर

 की तरफ निकली होती हैं ये स्पाइक प्रोटीन होती हैं। इसी को एस प्रोटीन भी कहा जाता है।

 

स्पाइक प्रोटीन का नुकसान

वायरस वातावरण के अनुसार खुद को बदलता है। वातावरण के अनुसार अपने जेनेटिक स्ट्रक्चर को

 बदलेगा। जब वह अपनी संरचना बदलेगा तो आरएन से प्रोटीन बन रही हैं तो प्रोटीन का स्ट्रक्चर बदल

 जाएगा। जिससे स्पाइक प्रोटीन में म्युटेशन हो जाते हैं। जब म्युटेशन हो जाता है तब वह आरटीपीसीआर

 टेस्ट में भी पकड़ में नहीं आता है। आरटीपीसीआर में प्रोटीन को देखा जाता है  फिर प्रोटीन से आरएनए

  बनाते  हैं। फिर देखते हैं कि ये आरएनए कोरोना वायरस का है या नहीं। अगर वह कोरोना वायरस से

 मैच कर गया तो कोरोना पॉजिटिव हो जाते हैं और मैच नहीं होने पर कोरोना नेगेटिव हो जाते हैं। जब

 म्युटेशन हो जाता है और किट पुरानी है तब कोरोना पकड़ में नहीं आता। वैक्सीन एक स्पाइक प्रोटीन के

 विरुद्ध काम कर रही है तब तक वायरस म्युटेंट हो जाता है जिस वजह से वैक्सीन प्रभावी नहीं रहती।

 

शरीर में स्पाइक प्रोटीन क्या करता है?

स्पाइक प्रोटीन वायरस को शरीर की कोशिका के अंदर प्रवेश करवाता है। इसे डॉक्टर अवधेश शर्मा ने एक

 उदाहरण के तौर पर समझाया। स्पाइक प्रोटीन किसी गेट की चाबी है। तो घर के अंदर जाने के लिए

 चाबी की जरूरत पड़ती है। स्पाइक प्रोटीन चाबी की तरह काम करता है। स्पाइक प्रोटीन जीवित लोगों

 के अंदर वायरस का प्रवेश आसान बना देता है। वायरस में जो कांटे वाले स्ट्रक्चर होते हैं ये स्पाइक प्रोटीन

 मनुष्य की बॉडी में एसीई2 रिसेप्टर होता है। जिसे angiotensin converting enzyme 2 receptor

 (ace2) कहा जाता है। ये एसीई2 रिसेप्टर शरीर के अलग-अलग अंगों में पाए जाते हैं। हृदय की

 कोशिकाओं में] मासपेशियों की कोशिकाओं में] रक्त वाहिकाओं की कोशिकाओं आदि में पाए जाते हैं।

 लेकिन सबसे ज्यादा फेफडो़ं की कोशिकाओं में होते हैं। स्पाइक प्रोटीन एसीई2 रिसेप्टर पर जाकर चिपक

 जाता है। इनसे चिपकर वायरस लिविंग सेल के अंदर एंट्री कर जाता है। शरीर में अंदर जाने के बाद

 वायरस अपनी कॉपी बनाने लग जाता है और तेजी से शरीर में फैलता है।




वायरस क्या होता है?

 

वायरस एक छोटा परजीवी होता है जो खुद को स्वयं से पुनरुत्पादित (reproduce) नहीं कर सकता। यह

 एक ए सेल्युलर स्ट्रक्चर है। वायरस में जेनेटिक मटेरियल होता है।

वायरस में पाया जाने वालाDNA या RNA सिंगल स्ट्रैंडेड और डबल स्ट्रैंडेड हो सकता है।यह वायरस के

 पूरे जीनोम संरचना का आधार होता है। यह सिर्फ कैस्पीड प्रोटीन,एन्जाईम्स और प्रोटीन को मेजबान के

 शरीर में प्रवेश कराता है जहां यह अपने से रेप्लिकेट करता है। वायरस मेजबान के शरीर में श्वसन तंत्र

 और खुले घाव के द्वारा प्रवेश करता है। कुछ वायरस insect के द्वारा भी मानव शरीर में फैलता है जैसे -

 डेंगू। वायरस का एक species से दूसरे species में पहुंचना बहुत ही कम पाया जाता है।

 शरीर में कैसे फैलता है वायरस?

डॉ0 अवधेश शर्मा का कहना है कि डीएनए और आरएनए दो तरह के वायरस होते हैं।  डीएनए वायरस

 प्रोटीन बनाते हैं और डीएनए से आरएनए बनता है। आरएनए वायरस भी प्रोटीन बनाते हैं। आरएनए से

 सीधा प्रोटीन बन जाता है। वायरस सजीव और निर्जीव दोनों कैटेगरी में आता है। कोई भी वायरस का

 कण जब हमारे शरीर में आता है तो बॉडी की कोशिकाओ में घुसता है। कोशिकाओं के डिविजन को कंट्रोल

 कर लेता है। वायरस कोशिकाओं को अनियंत्रित तरीके से बढ़ाता है। वायरस कोशिकाओं में जाकर अपनी

 कॉपी बनाने लग जाएगा। जिसे वायरल रेप्लीकेशन कहा जाता है। इस तरह से यह वायरस शरीर को

 नुकसान पहुंचाने लगता है। जिनकी इम्युनिटी स्ट्रांग होती है वह वायरस से लड़ लेती है जिनकी नहीं

 होती है वे बीमार पड़ जाते हैं।

कोरोना वायरस आरएनए वायरस है। आरएनए में भी ये सिंगल स्ट्रैंडिड  वायरस है। आमतौर पर कोरोना

 वायरस सिंगल स्ट्रैंडिड आरएनए  वायरस है। जबकि डीएनए वारयस डबल चेन होते हैं।





कोरोना फेफड़ों को ज्यादा क्यों प्रभावित करता है?

डॉ. अवधेश शर्मा का कहना है कि फेफड़ों में एसीई2 रिसेप्टर सबसे ज्यादा होते हैं, इसलिए कोरोना

 वायरस फेफड़ों को ज्यादा प्रभावित करता है। इसके बाद हार्ट और ब्लड वेसेल और किडनी पर असर

 डालता है। छोटे बच्चों में एसीई2 रिसेप्टर का अमाउंट कम होता है। उम्र के साथ एस रिसेप्टर बढ़ते हैं।

 लेकिन छोटे बच्चों में यह कम होता है इसलिए बच्चों पर कोरोना वायरस ज्यादा गंभीर प्रभाव नहीं डालता

 है। जब एसीई रिसेप्टर कम होंगे तो वायरस शरीर में कम प्रवेश करेगा, इसलिए बच्चों में यह ज्यादा

 नुकसानदायक नहीं है। एडल्ट्स में एसीई रिसेप्टर ज्यादा होते हैं इसलिए एडल्ट्स में ज्याद नुकसान पहुंचाता है।

कोविड-19 टीके कैसे काम करते हैं?

इस समय कोविड-19 के बहुत से टीके तैयार किए जा रहे हैं। इनका परीक्षण हो रहा है और साथ ही इन्हें

 मंजूरी मिल रही है। इन सभी का उद्देश्य है शरीर की रोग प्रतिरोधी व्यवस्था को सुरक्षित तरीके से

 कोरोना वायरस की पहचान कर उसे रोकने के लिए प्रशिक्षित करना है। इसके विभिन्न प्रकार निम्न हैः

 

निष्क्रिय विषाणु (इनएक्टिवेटेड) या कमजोर किए गए विषाणु (वीकेंड वायरस) के टीके, ये वायरस के

 एक स्वरूप का उपयोग करते हैं, जिसे निष्क्रिय कर दिया गया हो या कमजोर कर दिया गया हो, ताकि

 वह रोग का कारण नहीं बन सके। लेकिन ऐसी स्थिति में भी यह रोग प्रतिरोधी व्यवस्था को सक्रिय कर देता है।

वायरल वेक्टर टीके, ये अनुवांशिक इंजीनयरिंग के आधार पर तैयार विषाणु का उपयोग करते हैं ताकि

 अनुवांशिक कोड (जैसे कि डीएनए) को ले जाया जा सके और प्रोटीन पैदा किए जा सकें जो रोग प्रतिरोधी क्षमता को प्रोत्साहित करे, लेकिन कोविड-19 का कारण नहीं बने।

एमआरएनए टीके, जिनमें सिंथेटिक या कृत्रिम एमआरएनए होते हैं। यह कोरोना वायरस स्पाइक प्रोटीन

 तैयार करने के लिए उपयोग की गई सूचना है। यह प्रोटीन अकेला कोविड-19 का कारण नहीं बन सकता।

 हमारी कोशिकाएं इस एमआरएनए का उपयोग करती हैं और वायरल प्रोटीन तैयार करती हैं। ये हमारी

 रोग प्रतिरोधी व्यवस्था को एंटीबॉडी तैयार करने के लिए प्रेरित करती हैं, जो वायरस से लड़ता है और

 उसे रोकता है।

प्रोटीन-आधारित टीके

 ये प्रोटीन या प्रोटीन शेल के हानिरहित अंशों का उपयोग कर बनाये जाते हैं   जो रोग प्रतिरोधी क्षमता

 को सक्रिय करने के लिए कोविड-19 की नकल करता है लेकिन कोविड-19 रोग पैदा नहीं करता।


Cell adhesion molecules

The majority of viral receptors identified to date are celnladhesion molecules(CAMs) tha tfunction in cell- to-cell and cell-to-extra cellular matrix adhesion and thus are essential mediators of cellular processes such as development,maintenance of cellular structure, cell signaling, and maintenance and repair of tissues.The broad family of CAM includes selectins, cadherins, integrins, and IgSF members 


Breaking down the door :how viruses overcome multiple locks/receptors

 

Many viruses must utilize multiple receptors. In order to efficiently invade cells. Furthermore, in many cases,viruses utilize cell-type specific receptors, thereby lending additional restrictions to tropism.


 

Saturday 11 September 2021

गोल्डन आवर में लोगों को मदद पहुंचाएं


 

गोल्डन आवर में लोगों को मदद पहुंचाएं

किसी बीमारी से जूझ रहे या हादसे का शिकार हुए व्यक्ति को इमरजेंसी के दौरान जो पहली चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराई जाती है, उसे फर्स्ट एडकहते हैं। फर्स्ट एड यानी प्राथमिक चिकित्सा का मकसद पीड़ित को उचित चिकित्सकीय सहायता मिलने तक कुछ साभधानियों के साथ तत्काल स्थानीय सहायता प्रदान करना समय पर दी गई प्राथमिक चिकित्सा से जान तो बचती ही है, गंभीर विकलांगता से बचाने में भी मदद मिलती है। 

क्यों जरूरी है प्राथमिक चिकित्सा 

1 बीमार या दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की जान बचाई जा सके।

2 पीड़ित को रक्तस्राव या संक्रमण से बचाया जा सके।

3 सांस से जुड़ी किसी रूकावट को दूर करते हुए पीड़ित को सामान्य रूप से सांस लेने में मदद हो सके 

4 पीड़ित व्यक्ति को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना।



सड़क दुर्घटना से जुड़ी गंभीर स्थितियां 

सड़क दुर्घटनाएं आप्रकृतिक मौतों का सबसे प्रमुख कारण हैं। कुल सड़क दुर्घटनाओं में से 66-67 प्रतिशत दुर्घटनाएं तेज गति से वाहन चलाने के कारण होती हैं। आंकड़ों के अनुसार, मोबाइल पर बात करना 23 प्रतिशत दुर्घटनाओं का कारण है। अन्य कारणों में शराब पीकर गाड़ी चलाना, झपकी लग जाना आदि हैं। सड़क दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है, इसके लिए लोगों में यातायात नियमों और सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूकता फैलाना बहुत जरूरी है। परकोई दुर्घटना हो जाती है तो फिर बिना घबराए, शांत रहते हुए सही उपचार की जानकारी सब को होनी ही चाहिए।  

अत्यधिक रक्तस्राव (ब्लीडिंग) : जब त्वचा कट जाती है तो उस हिस्से की रक्त नलिकओं के क्षतिग्रस्त होने के कारण  खून बहने लगता है। अगर खून कम निकल रहा है तो आप घाव को आसानी से साफ कर लेते हैं, पर ज्यादा खून निकलने पर शरीर शॉक में जा सकता है। ऐसे में चक्कर आना, कमजोरी, सांस लेने में तकलीफ होना, हृदय की धड़कनें बढ़ जाने जैसी समस्याएं हो सकती हैं। सिर, पेट व छाती की अंदरूनी चोट में खून निकलने से स्थिति गंभीर हो सकती है।   

क्या करें :

 1  चिकित्सीय सुविधा पहुंचने तक घायल व्यक्ति को नीचे लेटा दें।  घाव पर हल्के हाथ से दबाव बनाए रखें।

संभव हो सके तो पैरों को दिल के लेवल से थोड़ा ऊंचा कर दें, ताकि प्रमुख अंगों तक रक्त संचरण हो सके।

3 घाव को छुए बिना उसे साफ पानी से धो लें, एंटी-सेप्टिक स्प्रे लगा दें और हल्की सूती पट्टी से बांध लें। इससे संक्रमण का खतरा कम हो जाएगा। 

4 कोई चीज घाव में गहरी धंसी है तो उसे बाहर न निकालें। बड़े घाव को साफ न करें।

5 ज्यादा खून बहने के कारण शरीर ठंडा पड़ रहा है तो व्यक्ति को किसी कपड़े से ढक दें। 

सिर की गंभीर चोट (हेड इंजुरी) :

सिर की चोट के अधिकतर मामले सड़क दुर्घटनाओं के कारण होते हैं। आंकड़ों की मानें तो सिर की गंभीर चोटों के 85 प्रतिशत मामलों में लोगों की मृत्यु हो जाती है। कुछ लोगों को लंबे उपचार की जरूरत पड़ती है, तो कुछ कोमा में चले जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार, अस्पतालों में लंबे समय तक भर्ती रहने वालों में से लगभग 20-30 प्रतिशत सिर व रीढ़ की हड्डी की चोट से पीड़ित होते हैं। वैसे, अधिकतर मामलों में खोपड़ी मस्तिष्क को क्षतिग्रस्त होने से बचाती है, पर बड़ी दुर्घटनाओं में मस्तिष्क भी चपेट में आ जाता है।

हड्डी टूटना :

 हड्डियों पर जब बाहर से अधिक दबाव या बल पड़ता है, तो वो इसे सह नहीं पातीं और टूट जाती हैं। जब हड्डी के साथ त्वचा भी क्षतिग्रस्त हो जाती है, तो उसे ओपन फ्रेक्चर कहते हैं। पर, जब त्वचा को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है तो उसे क्लोज्ड फ्रेक्चर कहते हैं। अगर दुर्घटना गंभीर है, तो हड्डियां टूटने के अलावा दूसरी गंभीर चोटें भी हो सकती हैं।

क्या करें :

1 तुरंत आपातकालीन नंबर पर फोन करें।   

2 घायल व्यक्ति को ज्यादा हिलाएं-डुलाए नहीं।

3 जहां से खून निकल रहा हो, वहां साफ कपड़े से दबाव डालें। अगर हड्डी टूट कर बाहर आ गई हो तो उसे शरीर के भीतर न धकेलें, न अलाइन करने की कोशिश करें।

4 अगर हड्डी टूटी है, तो कुछ भी खाएं-पिएं नहीं।   

शरीर का कोई भाग अलग हो जाना :

चिकित्सा के क्षेत्र में विकास के कारण कुछ मामलों में शरीर से अलग हुए अंग को जोड़ना भी संभव हो पाया है। अगर शरीर का कोई अंग कटकर अलग हो गया है तो उसे दुर्घटना स्थल पर न छोड़ें। अमेरिकन अकेडमी ऑफ ऑर्थोपेडिक सर्जन्स ने इससे जुड़े दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

क्या करें :

1 अगर संभव हो तो घाव और उस अंग को साफ पानी से धो लें, ताकि धूल-मिट्टी निकल जाए। साबुन या स्क्रब का इस्तेमाल न करें।

2 उसे साफ एअर टाइट प्लास्टिक बैग में रखें। इस बैग को बर्फ में रखकर अस्पताल ले जाएं। कटे हुए अंग को बर्फ में सीधे न रखें। इससे अंग खराब हो सकता है।

3 अगर कटे अंग को पुन: जोड़ना संभव है, तो पहले 12 घंटे बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं।

सांस लेने में दिक्कत:

सबसे पहले यह जांचें कि पीड़ित व्यक्ति ठीक से सांस ले पा रहा है या नहीं। मुंह को खुला रखें। उंगलियों की मदद से या फिर पीठ को थपथपाते हुए गला साफ रखने में मदद करें। अगर पीड़ित ठीक से सांस नहीं ले पा रहा है, बेहोश है या उसकी नाड़ी नहीं चल रही है, तो जरूरी है कि उसे सीपीआर (कार्डियो पलमोनरी रेसससिटेशन) दिया जाए। इसमें मुंह से सांस देना और 30:2 (कम्प्रेशन:वेंटिलेशन) की दर से छाती को दबाना शामिल है। अगर आप सीपीआर देने में प्रशिक्षित नहीं हैं, तब भी छाती को लगातार दबाते रहें, जब तक मूवमेंट दिखाई न दे या चिकित्सा सुविधा न मिल जाए। 

जलना :

 किसी दुर्घटना के दौरान, कारखाने में काम करते हुए या खाना बनाते समय, आग की लपटों के संपर्क में आना, जलने के कुछ प्रमुख कारण हैं। अगर जख्म मामूली हैं, तो ज्यादा छेड़छाड़ न करें, लेकिन गंभीर रूप से जलने पर विशेष देखभाल जरूरी हो जाती है। 

क्या करें :

1  अगर त्वचा थोड़ी झुलस गई है, तो वहां पर 10 मिनट तक ठंडा पानी डालें। बर्फ का ठंडा पानी न डालें।  

2  मामूली रूप से जले हुए स्थान पर बर्फ लगा सकते हैं, पर बर्फ को सीधे त्वचा पर न मलें। सूती कपड़े में लपेट कर सेंक दें। 

3 गंभीर रूप से जले जख्मों से अगर कपड़ा या कोई दूसरी चीज चिपक गई हो तो उसे खींच कर न निकालें। न ही जख्मों पर कोई तेल, क्रीम या मल्हम लगाएं।

4 जलने से होने वाले फफोलों को न फोड़ें, उन्हें अपने आप ठीक होने दें।

5  गीले जख्मों पर पट्टी न बांधें, इससे संक्रमण फैल सकता है। जख्मों को थोड़ा सूखने दें और पीड़ित को तुरंत  अस्पताल ले जाने की व्यवस्था करें। 

 

हमारा देश सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों के मामले में सबसे आगे है। इसके तीन प्रमुख कारण हैं- पहला, यातायात नियमों और सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूकता न होना। दूसरा, लोग प्राथमिक चिकित्सा के महत्त्व को नहीं समझते। तीसरा, सड़क दुर्घटनाओं के शिकार लोगों की सहायता करने में हिचकिचाहट। अगर दुर्घटना के बाद गोल्डन आवर में सही उपचार मिल जाए तो 90 प्रतिशत जिंदगियां बच सकती हैं। दुर्घटना के बाद के एक घंटे के समय को गोल्डन आवर कहते हैं।

 

प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स 

 

हमें घर और गाड़ी में फर्स्ट एड किटजरूर रखनी चाहिए। लंबी यात्रा के समय भी इसे अपने साथ रखें। एक सामान्य प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स में निम्न चीजें होनी चाहिए। 

1 जीवाणु रहित छोटी, मध्यम और बड़े आकार की सूती पट्िटयां ’  तिकोनी पट्टी  ’   सेफ्टी पिन्स ’  क्रेप की लपेटने वाली पट्िटयां ’  डिस्पोजेबल जीवाणु रहित दस्तानें ’  कैंची ’  छोटी और मध्यम आकार की धातु की चिमटियां ’  अल्कोहल रहित घाव साफ करने के लिए डेटॉल या सेवलॉन ’  चिपकाने वाले टेप 2  थर्मामीटर, विशेषकर डिजिटल ’  स्किन क्रीम ’  एंटीसेप्टिक क्रीम ’  पेन किलर, जैसे- पैरासिटामोल, एस्परिन ’  एंटीथिस्टामिन की गोलियां ’  डिस्टिल्ड वाटर, घावों और आंखों को साफ करने के लिए ’  एक फर्स्ट एड गाइड इलेक्ट्रॉल

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