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Friday 30 April 2021

इलाज के मोर्चे पर हम कैसे जीतेंगे

 

टोसिलिजुमैब और इटोलिजूमैब जैसे कठिन उच्चारण वाले शब्द लोगों की बातचीत और मैसेज में सुनने को मिल रहे हैं और परिवार या दोस्त की देखभाल के लिए आवश्यक चीजें जुटाने में असमर्थ होने की वजह से लोग निराशा और अपराधबोध से ग्रस्त हो रहे हैं।

हम एक ऐसी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के साथ संघर्ष कर रहे हैं, जो बेहतर हालात में भी पहुंच और गुणवत्ता के लिहाज से असमानता से भरी है। मौसमी बीमारियों में वृद्धि होती है, तो उसके लिए भी अस्पतालों में सीमित क्षमता है। प्रशिक्षित और योग्य स्टाफ कम हैं, खासकर संक्रामक रोगों और गंभीर रोगियों की देखभाल के संदर्भ में, और स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था अस्त-व्यस्त है। किसी भी समय, और खासकर अभी की स्थिति में साक्ष्य-आधारित चिकित्सा, या सही समय पर सही मरीज की सही देखभालजरूरी है।


भारतीय चिकित्सा समुदाय और स्वास्थ्य निति निर्माताओं के रूप में हमने इस महामारी के समय अच्छा काम नहीं किया है। चिकित्सा की भारतीय प्रणालियों में सदियों से अर्जित ज्ञान का भी हमने अनादर किया है। 

हमने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन जैसी दवाओं के मामले में विशेषज्ञों की राय को ताक पर रख दिया, जबकि आंकड़ों से यह बात सामने आ रही थी कि इसने काम नहीं किया है। पिछले हफ्ते राष्ट्रीय कोविड-19 टास्क फोर्स के दिशा-निर्देशों में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन और बुडेसोनाइड के इस्तेमाल को समतुल्य माना गया है और अनुशंसा की गई है कि ये दवाएं काम कर सकती हैं। बुडेसोनाइड का कम से कम ओपन लेवल स्टोइक परीक्षण ने समर्थन किया है और दिखाया है कि इससे अस्पताल में दाखिल होने की जरूरत कम पड़ती है और ठीक होने में कम समय लगता है।

साक्ष्य आधारित चिकित्सा के लिए आजीवन सीखने व चिकित्सा बिरादरी तथा मरीजों की निरंतर शिक्षा की जरूरत होती है। एक नई संक्रामक बीमारी के लिए, जहां हमें इस बात की कम जानकारी है कि उसमें नुकसान कैसे होता है और इसे कैसे संभालना है, वैसी हालत में पुरानी और नई दवाओं तथा चिकित्सा प्रबंधन उपायों का परीक्षण करके साक्ष्य पैदा करने पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है।

महामारी के दौरान शुरू में हम चीन से आने वाली जानकारी पर बहुत अधिक निर्भर थे, जहां यह दिखाई दिया कि हमें तुरंत और गहन वेंटिलेटर की आवश्यकता है, और तब एंटी-वायरल तथा अन्य दवाओं के लिए कई परीक्षणों का समर्थन किया गया था। गहन देखभाल विशेषज्ञों के अनुभवों के माध्यम से अब हम जानते हैं कि कई मरीजों को ऑक्सीजन मास्क, हाई-फ्लो नेजल कैन्यल या नॉन-इनवेसिव वेंटिलेशन की मदद से जहां तक संभव हो सके, वेंटिलेटर से दूर रखा जा सकता है।  

हालांकि, जब विशिष्ट दवाओं की बात आती है, तो सही मरीज के लिए सही समय पर सही दवा काम करती है और वह दवा साक्ष्यों पर निर्भर होनी चाहिए। और यह भी कि साक्ष्य क्लिनिकल परीक्षणों के माध्यम से निर्मित किए जाएं, न कि  लोगों की राय पर निर्भर हों। यह जानने के लिए कि दवाओं की आवश्यकता कब होती है, यह समझना महत्वपूर्ण है कि रोग कैसे पैदा और विकसित होता है। प्रारंभिक चरण में, बीमारी मुख्य रूप से सार्स-कोव-2 की प्रतिकृति द्वारा संचालित होती है। बाद में, खासकर जब संक्रमण नियंत्रित नहीं हो पाता है और लक्षण गंभीर होने लगते हैं, तब यह बीमारी सार्स-कोव-2 के प्रति अनियंत्रित प्रतिरक्षा और उत्तेजक प्रतिक्रिया से संचालित होती प्रतीत होती है, जिसकी परिणति उत्तकों की क्षति के रूप में होती है। सामान्य रूप से इस समझ के आधार पर, बीमारी के दौरान शुरुआती अवस्था में किसी भी एंटीवायरल उपचार का सबसे जल्दी असर होता, जबकि इम्यूनोसप्रेसिव/एंटी-इंफ्लेमेटरी उपचार की जरूरत कोविड-19 के बाद की अवस्थाओं में पड़ती है।

बीमारी के प्रारंभिक चरण में बुडेसोनाइड (अस्थमा के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक स्टेरॉयड) और गंभीर बीमारी वाले अस्पताल में भर्ती मरीजों में डेक्सामेथासोन के इस्तेमाल के परीक्षणों के सकारात्मक आंकड़ों से यह प्रतीत होता है कि रोग को बढ़ने से रोकने में स्टेरॉयड महत्वपूर्ण हैं। जहां तक रेमडेसिविर की बात है, तो गंभीर बीमारी पर कोई प्रभाव नहीं दिखा, लेकिन कुछ परीक्षणों में दिखा कि जो मरीज ऑक्सीजन की जरूरत वाली अवस्था में थे और जिन्हें हाई-फ्लो ऑक्सीजन या नॉन-इनवेसिव वेंटिलेशन की जरूरत नहीं थी, रेमडेसिविर ने अवधि कम करने और मृत्यु को रोकने में कुछ फायदा पहुंचाया। इससे यह रेखांकित होता है कि यह दवा सभी मरीजों के लिए नहीं है, बल्कि उपचार के एक विशेष चरण में एक छोटे से वर्ग के लिए है।

इसी तरह टोसिलिजुमैब के लिए भी (स्टेरॉयड सहित अन्य चिकित्साओं के संयोजन के साथ) साक्ष्य-आधारित अनुशंसाएं मरीजों के एक छोटे-से वर्ग तक सीमित हैं, जिनमें बीमारी तेजी से बढ़ रही हो और जिन्हें या तो हाई-फ्लो ऑक्सीजन की आवश्यकता है या नॉन-इनवेसिव वेंटिलेशन की। प्लाज्मा थेरेपी के लिए, जैसा कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च समर्थित प्लासीड ट्रायल में दिखाया गया है, इसका कोई सबूत नहीं है कि दाताओं के किसी भी समूह से लिया गया प्लाज्मा मददगार साबित हो रहा है। और वर्तमान में इसकी अनुशंसा भी नहीं की जा रही है। स्पष्ट जवाब बड़े क्लिनिकल परीक्षणों से मिलते हैं। भारत की क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री में हमारे पास 400 से अधिक पंजीकृत अध्ययन हैं, जिनमें से ज्यादातर छोटे अध्ययन हैं, जो भविष्य की प्रैक्टिस के बारे में जानकारी नहीं प्रदान करेंगे।

लोग शिद्दत से उन दवाओं को ढूंढ़ रहे हैं, जिनकी जरूरत नहीं है! यह सुनिश्चित करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि सभी स्वास्थ्य सेवा प्रदाता उपचार के बारे में बताने के लिए साक्ष्यों का उपयोग करें। पेशेवर संगठन, अनुसंधान समूह, नियामक और नीति निर्माताओं को यह सुनिश्चित करने में बड़ी भूमिका निभानी चाहिए कि उपचार का उपयोग जरूरत के मुताबिक किया जाए, न कि झूठी उम्मीद पैदा करने के लिए।


गगनदीप कंग
प्रोफेसर, क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर 
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
Courtsey Hindustan

Thursday 8 April 2021

बदलकर रूप पसरता वायरस

 

                                 

एक वर्ष से भी अधिक समय से दुनिया में कोविड-19 वायरस जनित बीमारी हावी है। 2020 के अंत में हमने सुरक्षित और प्रभावी टीकों के आने के बाद उम्मीद की किरणें देखीं। हमें लगा, टीकों में जोखिम को काफी कम करने की क्षमता है। लेकिन उसी समय वायरस के नए म्यूटेंट्स या उत्परिवर्तित रूपों ने हमारा ध्यान खींचना शुरू कर दिया। पहले ब्रिटेन में (बी.1.1.7) और फिर दक्षिण अफ्रीका (बी.135) ब्राजील (पी.1) में कोरोना वायरस के नए रूप सामने आए।

तब से कई अन्य और कोरोना वेरिएंट विश्व स्तर पर उभरे हैं, जो अधिक संक्रामक हैं और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया से बच भी सकते हैं। हम महामारी पूर्व के सामान्य जीवन में लौटने को तत्पर हैं, लेकिन कोरोना वायरस के नए रूपों ने यह आशंका पैदा कर दी है कि अभी कई लोग संक्रमित हो सकते हैं और जान भी जा सकती है। आज गहरी पड़ताल की जरूरत है। वास्तव में कोरोना के नए रूप या वेरिएंट क्या हैं? वे कैसे पैदा होते हैं और वायरस के प्रसार में इनकी क्या भूमिका है? क्या मौजूदा टीके इन वेरिएंट का मुकाबला कर महामारी का अंत कर सकते हैं?

कोरोना वायरस से होने वाली बीमारी एक ही तरह से शुरू होती है। वायरस मेजबान कोशिकाओं को पहचानकर उनमें घुसपैठ कर लेता है। उसकी नकल वाले वायरस अपने मेजबान से बच निकलते हैं और नए लोगों को संक्रमित करने लगते हैं। यह चक्र तब तक जारी रहता है, जब तक वायरस में फैलने की ताकत शेष रहती है। अब बड़ा सवाल है कि यह वायरस कुल मिलाकर कितना संक्रामक है?





कैसे बनता है नया म्यूटेंट ?

कोरोना वायरस में बड़ी संरचनाएं होती हैं, जिन्हें स्पाइक्स कहा जाता है। ये स्पाइक प्रोटीन से बने होते हैं। स्पाइक प्रोटीन कोरोना वायरस पर एक कुंजी की तरह होता है, जो कोशिकाओं को खोलता है, जिनमें एसीए2 रिसेप्टर नामक एक ताला होता है। यह वायरस अपनी प्रतियां बनाने और कोशिकाओं में प्रवेश करने में सक्षम होता है। वायरस का आनुवंशिक खाका, जिसे इसके जीनोम के रूप में जाना जाता है, स्पाइक प्रोटीन सहित वायरस को बनाने वाले अमीनो एसिड के आकार और विशेषताओं को तय करता है। लेकिन हर बार वायरस की नकल कॉपी सही या समान नहीं बनती है, उनमें बदलाव होते हैं, बदलाव के बाद जो वायरस बनते हैं, उन्हें म्यूटेंट्स कहा जाता है। इस बदले हुए वायरस को मूल कोरोना वायरस से मिलाया जाता है और इससे दोनों के बीच का अंतर पता चलता है।

नए म्यूटेशन की पहचान करने का सबसे अच्छा तरीका जीनोम परीक्षण ही है। संक्रमित मरीजों से लिए गए कोरोना वायरस के नमूनों की तुलना कोरोना वायरस के ब्लूप्रिंट से की जाती है और यह देखा जाता है कि वायरस में किस प्रकार से परिवर्तन हो रहा है। वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश करते हैं कि कोरोना का नया प्रकार कहां से आया।

स्पाइक प्रोटीन में होने वाले बदलाव को भी जानना जरूरी है, ताकि संक्रमण के प्रति प्रतिरक्षा तैयार की जा सके और टीकों की प्रभावशीलता भी बढ़ाई जा सके। चूंकि टीके जनवरी 2020 में वुहान में पहचाने गए मूल कोरोना वायरस से लड़ने में मदद के लिए बनाए गए हैं, इसलिए भी नए वेरिएंट की पड़ताल जरूरी है। यह देखना होगा कि नए उभरते वायरस के साथ लड़ने में टीकों को क्या समस्याएं रही हैं। वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है, लेकिन इस लड़ाई में एकमात्र एंटीबॉडी ही सहायक नहीं है।

कितना संक्रामक?

सीधे शब्दों में कहें, तो महामारी की शुरुआत में वुहान में जिस वायरस का पता चला था, वह बहुत ही संक्रामक था। कुछ ही समय बाद वायरस में बदलाव हुआ और पहला वेरिएंट डी614जी सामने आया। इस वेरिएंट पर विश्व स्तर पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया गया, क्योंकि विकसित हो रहा टीका इसके खिलाफ भी काम कर रहा था। डी614जी का उद्भव वर्ष 2020 के मध्य में हो गया था, लेकिन 2020 के खत्म होते-होते कोरोना के अनेक वेरिएंट्स का पता चलने लगा। अब खतरा यह है कि अलग-अलग प्रकार का वायरस प्रतिरक्षा तंत्र को कमजोर कर सकता है और महामारी को बदतर स्थिति में पहुंचा सकता है।

दिसंबर 2020 में ब्रिटेन में एक वेरिएंट का पता चलने पर शोधकर्ता हैरान रह गए थे, जिसमें मूल वायरस की तुलना में 23 बदलाव हुए थे, जिनमें आठ स्पाइक भी शामिल थे, जिन्होंने मिलकर इसके संक्रमण को आसान बना दिया था। जल्द ही ब्रिटेन और यूरोप का अधिकांश भाग तेजी से फैलने वाले संक्रमण की चपेट में गया। वहां तत्काल लॉकडाउन की आवश्यकता पड़ गई। संयुक्त राज्य अमेरिका सहित लगभग 110 देशों में अब कोरोना के इस संस्करण का पता चला है। यह संस्करण भारत के कई हिस्सों में भी पाया जा रहा है, जहां अभी मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। कुल मिलाकर, यह संस्करण सामान्य से 50 प्रतिशत अधिक संक्रामक है। इसके नतीजे अधिक गंभीर और घातक हैं। एस्ट्राजेनेका और नोवावैक्स के टीके भी इस वेरिएंट के मुकाबले कम प्रभावी हैं।

दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील में पहचाने गए वेरिएंट में भी बड़े पैमाने पर बदलाव दर्ज हुए हैं। ब्राजील में पाए गए वेरिएंट में एस्ट्राजेनेका, नोवावैक्स और जॉनसन एंड जॉनसन के टीकों की प्रभावशीलता परीक्षण के दौरान कम पाई गई है। इस वेरिएंट को अधिक संक्रामक भी माना जाता है।

कितने हुए बदलाव?

आखिर यह महामारी कहां से आई है? यह वायरस 13 करोड़ से ज्यादा लोगों को संक्रमित कर चुका है। आशंका है, यह वायरस बदलाव के अनेक दौर से गुजरेगा। अब तक कितने बदलाव हो चुके हैं, कहना मुश्किल है। कोरोना वायरस संक्रमण आमतौर पर कुछ दिनों के अंदर ही ठीक हो जाता है। जितने समय यह शरीर में रहता है, उतने समय तक दूसरों में संक्रमण जारी रहता है। जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है, वह वायरस से ठीक से लड़ पाते हैं।

हालांकि, हम ऐेसे लोगों के बारे में भी जानते हैं, जिनमें काफी लंबे समय तक संक्रमण रहा और उस दौरान वह वायरस फैला रहे थे। एक तरह के संक्रमण का औसत काल 115 दिनों का रहा है, जिस दौरान वायरस ने म्यूटेशन को बनाए रखा, जिसके परिणामस्वरूप स्पाइक प्रोटीन को मौका मिला। वायरस में बदलाव ज्यादातर लोगों में नहीं हुआ होगा, लेकिन जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता ठीक नहीं होगी, उन्होंने वायरस में बदलाव को बढ़ावा दिया हो सकता है। इलाज में एंटीबॉडी थैरेपी या प्लाज्मा का भी इस्तेमाल हुआ है। कई लोगों में प्लाज्मा विधि ने सही काम नहीं किया, क्योंकि उन्हें मजबूत प्लाज्मा नहीं मिला और उनमें कोरोना लंबे समय तक टिका रहा। अब हम जानते हैं, जो प्रमुख वेरिएंट घूम रहे हैं, वे संक्रमण से उबरने वाले लोगों के प्लाज्मा के प्रति कम संवेदनशील हैं।

एक और बात महत्वपूर्ण है, दो टीकों के बीच अगर जरूरत से ज्यादा समय छोड़ा जाए, तो कोरोना के नए वेरिएंट ज्यादा घातक हो सकते हैं। एक खुराक लेने के बाद दूसरी छोड़ देने से भी नए वेरिएंट को बढ़ने का मौका मिल सकता है। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि लंबे संक्रमण और एंटीबॉडी की कम मात्रा के संयोजन ने वायरस को चिंताजनक वेरिएंट में बदलने का मौका दिया है।

25 मार्च 2021 को, जब भारत में मामले बढ़ रहे थे, भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने लोगों को सूचित किया कि ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील में पहचाने गए वेरिएंट भारत के कुछ हिस्सों में रोगियों के नमूनों में पाए गए हैं। यह चिंता का विषय है। मंत्रालय ने यह भी बताया कि एक पूरी तरह से नए संस्करण, जिसे जल्दी में डबल म्यूटेंट करार दिया गया है, उसकी पहचान की गई है। महाराष्ट्र के नमूनों के विश्लेषण से पता चला है कि दिसंबर 2020 की तुलना में 484क्यू और एल452आर के नमूनों में वृद्धि हुई है। इस तरह के म्यूटेंट संक्रामकता में वृद्धि करते हैं। इसका मतलब वायरल नमूनों से स्पाइक प्रोटीन के महत्वपूर्ण भागों में दो एमिनो एसिड परिवर्तनों के साथ यह कोरोना वायरस का एक नया, संभवत: अधिक संक्रामक संस्करण है। एमिनो एसिड परिवर्तन भी खासा चिंताजनक है।

डबल म्यूटेंट

अत्यधिक संक्रामक डबल-म्यूटेंट वैरिएंट क्या है, जो अभी-अभी खोजा गया है? यदि महाराष्ट्र में नए मामलों का अनुपात मौजूदा 15-20 प्रतिशत की गति से बढ़ जाता है, तो हम इस मामले पर संदेह कर सकते हैं। क्योंकि यही वायरस था, जो अमेरिका में तेजी से फैल रहा था। यदि यह संस्करण अधिक संक्रामक है, तो हम यह भी जानना चाहेंगे कि यह कितनी तेजी से फैल सकता है। इसी से हमें पता चलेगा कि सामूहिक प्रतिरक्षा या हर्ड इम्यूनिटी तक पहुंचने के लिए कितने अधिक लोगों का संक्रमित होना या टीकाकरण आवश्यक है। जो वेरिएंट अधिक संक्रामक होते हैं, वे महामारी के मापदंडों को बदल देते हैं और सामूहिक प्रतिरक्षा सीमा को बढ़ा देते हैं।

दुनिया का टीकाकरण

हमें पहले कम से कम एक बार पूरी दुनिया का अधिकतम टीकाकरण करवाना पड़ेगा। कोरोना के नए वेरिएंट से मुकाबले के लिए यह जरूरी है। खुराक और आने वाली बुस्टर खुराक को लेना पड़ेगा। हमें मरीजों से लिए गए विषाणुओं के जीनोम का अनुक्रमण भी करते रहना होगा। यदि हम नए वेरिएंट की खोज नहीं करते हैं, तो हम उनसे निपटने में सक्षम नहीं होंगे।

ऐसा लग सकता है, कोरोना वायरस में नए वेरिएंट पैदा करने की अनंत क्षमता है, लेकिन यह सच नहीं है। स्पाइक प्रोटीन में इतने म्यूटेशन के बाद भी हम कई बार एक ही तरह के बदलाव देख रहे हैं। तैयार रहना चाहिए, कोरोना से लड़ने के लिए समय के साथ हमें केवल कुछ अलग-अलग टीकों और बूस्टर शॉट्स की आवश्यकता पड़ सकती है।

जरूर लें टीका

हमें अभी जो टीका दिया जा रहा है, उसे लेने के लिए स्पष्ट वैज्ञानिक सलाह है। व्यावहारिक रूप से हमें किसी भी अच्छी चीज का दुश्मन नहीं बनना चाहिए। हम एक वायरस के खिलाफ एक प्रतिरक्षा हथियार अर्जित करने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। टीकाकरण अगर हो, तो आपको कोई लाभ नहीं मिलने वाला। बिना किसी सुरक्षा रहने के बजाय आंशिक सुरक्षा प्राप्त करना बेहतर है। जब आप टीके के लिए रुकते हैं, तो इस बीच कोरोना के और संस्करण पैदा हो सकते हैं। अभी टीका लगवाने का सबसे अच्छा समय है। जितने लोग टीकाकरण करवा रहे हैं, उतने लोग हमारी रक्षा कर सकते हैं। टीके ही हमारे हथियार हैं।

क्या हो रहा है

2020 के अंत तक कोरोना के अनेक वेरिएंट का पता चलने लगा था। वुहान में सामने आया मूल कोरोना वायरस पीछे छूट चुका है और अब उसके नए-नए रूप संक्रमण को तेज कर रहे हैं। ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील से आए वेरिएंट खतरनाक हैं। भारत में भी खतरा बढ़ा है।

क्या जरूरी है

हर किसी का टीकाकरण जरूरी है। वैक्सीन की दो खुराक के बीच निर्धारित समय का पालन होना चाहिए। एक खुराक लेने के बाद दूसरी खुराक छोड़ना ठीक नहीं। विशेषज्ञों के अनुसार, सामान्य खुराक और बुस्टर खुराक भी आवश्यक है, ताकि रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनी रहे। 

आगे तैयारी

अभी जो कोरोना टीके हैं, मोटे तौर पर वुहान में पैदा मूल वायरस से लड़ने में ज्यादा सक्षम हैं, लेकिन दूसरे वेरिएंट में भी कारगर हैं। कोरोना के नए प्रकार सामने आएंगे, तो टीकों का भी उनके अनुरूप विकास करना होगा। शायद अलग-अलग वायरस में अलग-अलग दवा काम आएगी।

                                                                                                   Courtsey Hindustan